Safar
तपती रेत पर चलते कोसो दूर आ गए है
मंजिल तोह दूर अब घर भी भूल चुके
इस बेरेहेम सफ़र पर हम खुद सिफार हुए है
लेकिन कोई कसक है ओढ़े हुए
शायद मिल जाये एक तालाब, काबिल ऐ प्यास
और उस ही के दर्पन मे तुम्हारी एक झलक भी
- संकेत
Quilled by Sanket Korgaonkar at09:25
Labels:Just me ....,Poem
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